Monday, April 1, 2019

श्रीधर तिळवे नाईक

आत्म नहीं हैं सिर्फ कथा हैं
यही बड़ी शायद
आजकी व्यथा हैं

कई "मैं " मेरे ब्रेनमे आये
और सच ये हैं कि
हर मैं झूठा हैं

जोड़ तो रहा हूँ नेटवर्किंगसे
और नेटवर्क कह रहा हैं
तू मेरा सिर्फ एक हिस्सा हैं

एक क्लिकपे मिलती हैं आज मुमताज
मगर मोहब्बतसे पहलेही पूछती हैं
मेरा ताजमहल कहाँ हैं

ख्वाब और लॅपटॉपमे फ़र्क़ क्या ?
जो स्क्रिनपे आता हैं वो
यही सवाल पूछ रहा हैं
*****

दर्द अच्छा होता हैं
मरा नहीं हूँ एहसास होता हैं

वो तो सिर्फ विडिओमे जुल्फे उड़ाती हैं
मेरी आँखोंमे क्यूँ लहरोंका पदन्यास होता हैं

हर किसीके पास  रोगका इलाज हैं
फिर हर आदमी क्यों यहाँ बीमार होता हैं

मन तो मंटोपे आया हैं उसका
और मंटोंका रोज क़त्ल होता हैं

वो सीढ़िया चढ़के कल आगे निकल गया
और आज  उसने कहा की जो पीछे रहता हैं वो अपाइज होता हैं
***

कैमेरा झूठ बुलवाता हैं
आत्माका मर्डर करवाता हैं

मेकप चढ़ता हैं ब्रेनपे
ब्रेन अभिनेता बन जाता हैं

दुनिया बनती हैं कपडोंका बाजार
कॉस्च्यूम डिज़ाइनर सत्ता फैलाता हैं

सब सिन सीना तानते हैं
ऑडियंस कुर्सीमे बैठ जाता हैं

इतना सन्नाटा क्यों हैं भाई
फिल्म खत्म होनेके बाद कोई अँधा पूछता हैं














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